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स्वागत है आपका पुन: परिकल्पना पर
एक सुन्दर और खुशहाल सह अस्तित्व को मूर्तरूप देने की दिशा में प्रतिबद्ध परिकल्पना ब्लॉग की महत्वपूर्ण सामूहिक पहल यानी ब्लोगोत्सव-२०१० की परिकल्पना ....
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मुझे ख़ुशी है, कि मैं भी -
इस अद्भुत और अविस्मरनीय पहल का एक हिस्सा हूँ !
अभी ब्रेक से पहले मॉल संस्कृति पर परिचर्चा में शामिल थीं वाणी शर्मा
वाणी की वाणी के बाद आईये अब आगे बढ़ते है
और चलते हैं मुकेश कुमार सिन्हा के पास -
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वैश्विकरण, उदारीकरण, बाजारवाद और उपभोक्ता संस्कृति को प्रश्रय देने की प्रक्रिया है "माल संस्कृति"! गली मोहल्ले में स्थानीय बासिंदों की जरूरतों के मद्दे नजर खुलने वाली दैनिक उपभोग की सामग्री की अलग अलग दुकानों की जगह एकल खिड़की (single window) व्यवस्था के तहत शीत ताप नियंत्रक के नीचे जो चाहोगे वही मिलेगा का साकार रूप है "माल"!! यह बच्चों, किशोरों की मौजोदा पीढ़ी को सम्मोहित करने "EAT, DRINK and BE MARY" की संस्कृति को सिंचित करने प्लावित पुष्पित करने, सबल और निर्बल के बीच की खाई को और चौड़ा करने की साजिश करने वाला culture है...........है ![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8yZy88a-CuSueMaXw2yKOIfyk3MCAR9270BSdCMZ8B-Gi6ydD5zt1rK26QorumhBnE_qSxvmAUm30krRernmn6L9sNqBb-0ZxghpmVXcYkLwISbd9gsw072bS85hiDQHPW4SWnFUpd-Q/s200/mukesh.jpg)
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8yZy88a-CuSueMaXw2yKOIfyk3MCAR9270BSdCMZ8B-Gi6ydD5zt1rK26QorumhBnE_qSxvmAUm30krRernmn6L9sNqBb-0ZxghpmVXcYkLwISbd9gsw072bS85hiDQHPW4SWnFUpd-Q/s200/mukesh.jpg)
मुकेश कुमार सिन्हा
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एक ऐसा खौफ जो आखिरकार गलत साबित हुआ है। खौफ यह था कि बड़ी संख्या में जानी-मानी कंपनियों के रिटेल स्टोर खुलने से पास-पड़ोस की किराना दुकानों को भारी नुकसान होगा और वे अपना बोरिया-बिस्तर समेटने पर विवश हो जाएंगी। हालांकि, सच्चाई यही है कि मौजूदा समय में किराने की दुकानों और शॉपिंग मॉल दोनों में ही अच्छी-खासी खरीदारी हो रही है। चाहे त्योहारी सीजन हो या न हो, किराने की दुकानों और शॉपिंग मॉल में खरीदारों की चहल-पहल काफी बढ़ चुकी है। इससे भी बड़ी बात यह है कि देश में खासकर महानगरों में तेजी से फैल रही मॉल संस्कृति ने लोगों की शामें बदल दी हैं। शॉपिंग मॉल जाने पर बेशक खरीदारों की जेबें ढीली होती हैं, लेकिन तब भी बड़ी संख्या में लोग सप्ताह में कम-से-कम एक दिन तो शाम का वक्त वहीं गुजारने लगे हैं। इस बारे में पूछने पर कई लोगों ने बताया कि अच्छे माहौल वाले शॉपिंग मॉल में खरीदारी करने का मजा ही कुछ और है। बच्चों को तो शॉपिंग मॉल और भी ज्यादा रास आ रहे हैं क्योंकि एक ही जगह पर उन्हें एनज्वॉय करने के साथ-साथ अपनी पसंद की ड्रेस, खिलौने वगैरह खरीदने में आसानी होती है।
शॉपिंग मॉल से एक और बड़ा फर्क यह आया है कि अब सामान्य लोगों के घरों में भी ऐसे सामान दिखने लगे हैं जो पहले अक्सर ज्यादा पैसे कमाने वालों के ही यहां नजर आते थे। कारण यह है कि पहले सामान्य कमाई वाले लोग महंगी वस्तुएं बेचने वाली दुकानों के अंदर जाने से परहेज किया करते थे, जबकि शॉपिंग मॉल में उन्हें इन वस्तुओं की कीमतें पूछने और सौदेबाजी करने का भी मौका मिल जाता है। एक और खास बात यह है कि शॉपिंग मॉल ने इंडिया गेट जैसे लोकप्रिय स्थलों का भी आकर्षण कम कर दिया है। वजह यह है कि घर से मामूली दूरी पर स्थित शॉपिंग मॉल तक जाने-आने में आसानी होती है और लोगों का दो-तीन घंटे का वक्त तेजी से गुजर जाता है।
राजीव रंजन सिन्हा
यह परिचर्चा अभी जारी है, किन्तु इससे पहले आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां कवि कुलवंत अपनी एक कविता पुष्प का अनुराग लेकर उपस्थित हैं ....यहाँ किलिक करें
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जारी है उत्सव मिलती हूँ एक अल्प विराम के बाद
भ्रष्टाचार ,सरकार और बिल्डर माफिया के गंदे मेल का नाम है -मॉल ,इस गंदगी ने इंसानियत को और व्यवसाय को इतना शर्मसार किया है की जिसकी भरपाई कभी हो ही नहीं सकती / हमारा तो एक ही उपाय है इन माल में न कभी जाना और न ही कोई खरीददारी करना / हमारे जानने वाले भी ऐसा ही करतें हैं /मेरी सलाह है की इमानदार व्यवसायियों को इन मालों से अपनी दुकान बंद कर देनी चाहिए ,क्योकि ज्यादातर लोग समझ चुके हैं की जो मॉल में दुकान है उनको बिल्डरों ने लूटा है तो वो भी ग्राहकों को लूटेंगे ही /
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण और सार्थक सन्दर्भों से युक्त परिचर्चा
जवाब देंहटाएंकभी तक़्दीर का मातम कभी दुनिया का गिला
जवाब देंहटाएंमंज़िल-ए-इश्क़ में हर वाम पे रोना आया ..!
आज ज़िन्दगी में हम जितना पश्चात्य संस्कृति की और बढ रहे हैं..
उलझने उतनी ही बढ रही हैं..
ये मॉल उसी संस्कृति की देन हैं..
खुशी की ओर से आप सब को बहुत बहुत बधाई...
दिल के उदगार को व्यवस्तित ढंग से प्रस्तुत करने का स्तोत्र है ये ब्लॉग.
bhaavpurn aur saarthak pricharcha .
जवाब देंहटाएंbadhai sweekaar karen.
कहाँ से लाते हो तुम इतनी सारी खबरें?
जवाब देंहटाएंक्या कोई यह बता सकता है कि इन माल्स में वो आत्मीयता आ सकती है जो हमारी आस-पास की दुकानों में आती है?
क्या माल में सामान बेचता व्यक्ति पैसे कम पड़ने पर यह कह सकता है- कोई बात नहीं भाई साहब, ना आप कहीं भाग रहे हैं और न हम। आते-जाते में दे जाइएगा। और, घर पर भाभी जी, बच्चे सब ठीक हैं न?
यह आपको केवल माल के बाहर की दुकानों में ही मिल सकता है।
कहाँ से लाते हो तुम इतनी सारी खबरें?
जवाब देंहटाएंक्या कोई यह बता सकता है कि इन माल्स में वो आत्मीयता आ सकती है जो हमारी आस-पास की दुकानों में आती है?
क्या माल में सामान बेचता व्यक्ति पैसे कम पड़ने पर यह कह सकता है- कोई बात नहीं भाई साहब, ना आप कहीं भाग रहे हैं और न हम। आते-जाते में दे जाइएगा। और, घर पर भाभी जी, बच्चे सब ठीक हैं न?
यह आपको केवल माल के बाहर की दुकानों में ही मिल सकता है।
der se aane ke liye kshama chahunga mausi, bahut he sakaratmak or satik likha hai aapne,,,, badhaai
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