"अचानक कोई सामने से आकर हँस देता है..ना जान ना पहचान ...अचानक कभी कोई मदद कर देता है...जब हम कोई टिकिट की बड़ी सी लम्बी कतार में खड़े हों और अचानक कोई आ कर कहे हमें, कि मैंने ये कूपन लिया है ज्यादा है क्या आपको चाहिए... कभी कोई आ कर कहता है कि मुझे ऐसा क्यों लगता है की मैंने आपको कही देखा है , ऐसा महसूस होता है...और हमारे दिल के तार भी हिल जाते है॥
कभी कुछ काम कर रहे हों तो ऐसा होता है की ये काम हमने पहेले भी तो किया है...कभी कोई ऐसी जगह पे जहाँ हम जाते है जहाँ पहली ही बार गये हों पर ऐसा लगता है यहाँ आए हों पहले भी... नेट का कोई विश्व था ऐसा हमें पता नहीं था..पर अब ऑनलाइन हमारे बहोत सारे दोस्त है..ऑरकुट में लाखो लोग है..हम क्यों उसमे से १०० को अपना बनाते है..और उसमे से भी क्यों हम सिर्फ १० से जुड जाते हैं ...उसके दुःख से हम दुखी होते है..और उसके सुख से हम सुखी होते है..क्यों एक ही के घर में रह रहे लोग एक दूसरे से बहुत दूर होते है और बहोत दूर रहेने वाले लोग दिल के करीब होते है.. क्या आपके दिल में ऐसे सवाल नहीं आते ?कि क्यों कभी कोई अपना लगने लगता है............हाँ कुछ है जिसे हम पुनर्जन्म कह सकते है...क्या आप मानते है??"
नीता जी के विचारों के बाद आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां "रज़िया" मिर्ज़ा उपस्थित है अपने संस्मरण के साथ .....यहाँ किलिक करें
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जारी है परिचर्चा मिलती हूँ एक अल्प विराम के बाद
ख्याल अपना अपना।
जवाब देंहटाएंपुनर्जम सत्य है ,एक ही चीज को सीखने में कई जन्म लग जाते हैं तब हम उसमें सिद्धहस्त हो पाते हैं .
जवाब देंहटाएंsoch apni apni:)
जवाब देंहटाएं..मैं पुनर्जन्म में मानती नहीं हूँ!..हां!...आत्मा के अस्तित्व से मुझे इंकार नहीं है!...मृत्यु के बाद शरीर से मुक्त हो चुकी आत्मा ब्रम्हांड में विलीन हो जाती है..जैसे एक बूँद पानी सागर में मिल जाने पर उसका अलग अस्तित्व कहाँ रह जाता है?...फिर पुनर्जन्म कैसा?..किसी व्यक्ति से मिल कर अच्छा या बुरा लगना या किसी स्थान को पहले भी कभी देखने का मन में भाव उठना...मन में उठने वाली उथल पुथल की वजह से है!..कोई हमारी मदद करता है या हम किसी की मदद करते है यह अच्छे संस्कारों का परिणाम है!..यह मेरे निजी विचार है!..इससे किसी के जज्बातों को ठेस पहुँचती है...तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ!
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