रश्मि प्रभा के साथ एक मुलाकात में-
प्यार के जाने-माने स्तम्भ इमरोज़ ने कहा, कि- " सुकून उसमें है जो आपके पास है/ और जो मिला हुआ है /
वो ज़िन्दगी का सुकून बन जाता है / पर जो भाग रहे हैं / वे बहुत कुछ चाहते हैं / बहुत कुछ / चाहत की दौड़ कभी ख़त्म नहीं होती / ये ज़िन्दगी ख़त्म हो जाती है / खाना सेहत बनाता है / पर ज़रूरत से ज्यादा खाना /ज़हर भी बन जाता है...!"

दुष्यंत के बाद हिंदी के बहुचर्चित गज़लकार श्री अदम गोंडवी  परिकल्पना ब्लॉग उत्सव के नाम अपने सन्देश में कहा कि- " हिन्दी ब्लॉगिंग शैशवा-वस्था से आगे निकल कर किशोरावस्था को पहुँच रही है, ऐसे में जरूरत है हिंदी ब्लोगिंग के माध्यम से एक नयी क्रान्ति की प्रस्तावना की जाए । सफलता-असफलता के बारे में न सोचा जाए, केवल कर्त्तव्य किया जाए । सामूहिक कर्त्तव्य के बल पर ही हिंदी ब्लोगिंग का विकास संभव है ।

इंटरनेट की दुनिया में पहली बार हिंदी ब्लॉग पर उत्सव की परिकल्पना, सुनकर सुखद आश्चर्य हुआ । परिकल्पना ब्लॉग उत्सव का शुभारम्भ आपने किया है वह स्वागत योग्य है । आपका यह कदम आन्दोलन धर्मी, रंगकर्मी, साहित्यकार व उद्यीमान रचनाकारों के लिए एक उपयोगी कदम है। मैं परिकल्पना ब्लॉग उत्सव का स्वागत करता हूँ।"
 
रवि रतलामी ने कहा- "जब तक 1000 पोस्ट न लिख ली जाए, किसी ब्लॉगर को सफलता असफलता के बारे में सोचना नहीं चाहिए. ......एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा, कि- ". हिन्दी के नए सूर और तुलसी ब्लॉगिंग के जरिए ही पैदा होंगे, यकीनन....!" वहीं जी. के. अवधिया ने कहा, कि- "हिन्दी ब्लोगिंग का भविष्य उज्ज्वल दिखाई दे रहा है ... प्रमोद ताम्बट ने कहा- " ब्लॉगिंग को परिवर्तन के हथियार के रूप में ढालने की ज़रूरत है....!"अविनाश वाचस्पति ने कहा- " हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की ताकत को कम करके आंकना बिल्‍कुल ठीक नहीं है: " गिरीश पंकज ने कहा-"मानवीय सर्जना का नवोन्मेष है यह.....!"

वहीं हिंदी के महान साहित्यकार कृष्ण बिहारी मिश्र ने कहा, कि - " जड़ से विच्छिन्न लेखन की आयु बहुत छोटी होती है ....!"

और आज हिंदी-उर्दू अदब के मशहूर शायर गौहर राजा ने कहा, कि  - "वर्चुअल टेक्नोलोज़ी में जबरदस्त सामर्थ्य है !"
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इस क्रम को मैं आगे बढ़ाऊंगा अगले चरण में ...अभी आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां एम.वर्मा अपनी   कविता : इस वारदात में मेरा कोई हाथ नहीं है ....लेकर उपस्थित हैं ...................... .यहाँ किलिक करें  
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बने रहिये परिकल्पना के साथ , मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद

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