"आज किसी भी संस्कृति की शुचिता की बात करना बेमानी ऒर ग़ॆरजरूरी हॆ ।हमें अपनी ऒर अपने आस-पास की जीवन शॆली पर भी ध्यान देना होगा ।उसके तिरस्कार ऒर स्वीकार करने वालों के मंसूबों को समझना ऒर परखना होगा । यूं भी आज राजनीति पूरी तरह हावी हॆ ऒर उसका अधिकांश स्वार्थी ऒर मॊकापरस्त हॆ । उसने तो संन्यासियों तक को लपेटे में ले लिया हॆ । आदमी की तो क्या ऒकात हॆ। ऎसे में आदमी का क्या ठीक हॆ ऒर क्या गलत हॆ के द्वन्द्व में फंस जाना स्वाभाविक हॆ । अत: आज स्वरूप के बारे में दो टूक बात करना असंभव सा हॆ । हां हमारे साहित्य, संस्कृति ऒर समाज की आशान्वित सोच हमारी बह्त बड़ी पूंजी हॆ , इसे हमें नहीं छोड़ना हॆ । "
यह बात कहना है समकालीन कविता के प्रखर युवा स्तंभ श्री दिविक रमेश का .....वे हिंदी ब्लोगिंग की दिशा दशा पर कहते हैं कि- "हिन्दी ब्लोगिंग अभी, मेरी निगाह में, शिशु हॆ जिसे परवरिश की दरकार हॆ । इसे बहुत स्नेह चाहिए ऒर प्रोत्साहन भी ।अच्छी बात यह हॆ कि इसे पालने-पोसने वाले मॊजूद हॆं । मेरा स्वयं का ब्लाग हॆ ऒर उसे देखा-पढ़ा भी जा रहा हॆ । दशा अच्छी हॆ । गति भी दिशाहीन नहीं हॆ ।"
आज ब्लोगोत्सव-२०१० के नौवें दिन हिन्दी कविता के प्रखर युवा हस्ताक्षर श्री दिविक रमेश से रूबरू करवा रहे हैं श्री मुकेश चंद्रा ...........यहाँ किलिक करें
उत्सव जारी है मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद
Is Ojasvi Rachnakar se milwane ka shukriya.
जवाब देंहटाएंब्लोगोत्सव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि प्रत्येक दिन आपकी प्रस्तुति का अंदाज बदलता रहा है , आपकी प्रस्तुति आकर्षित करती है .....आपने एक प्रकार से इतिहास रच दिया है हिंदी ब्लोगिंग में .....आपको कोटिश: साधुवाद !
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सारगर्भित रचना, बधाई !
जवाब देंहटाएंमेरी ढेर सारी शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएं