मैं समय हूँ !
"परिकल्पना परिकल्पना की दे अमित आनंद.
मिलें शतदल कमल से हम, गुँजा स्नेहिल छंद..
रचें चिट्ठों का अभी मिल, नया ही संसार.
बात हो केवल सृजन की, सब तजें तकरार..
गोमती से नर्मदा मिल, रचे नव इतिहास.
हर अधर पर हास हो, हर ह्रदय में हो प्यास.. "

उत्सव के सन्दर्भ में-
आचार्य संजीव वर्मा "सलिल " की कही गयी इन पंक्तियों के साथ
आपको सिलसिलेवार सुना रहा हूँ -
अथ ब्लोगोत्सव कथा !



बात उन दिनों की है जब इस उत्सव की केवल परिकल्पना की गयी थी और-
एक स्वर में लगभग सभी चिट्ठाकारो के साथ-साथ अविनाश वाचस्पति ने कहा- " नेक विचार" साथ ही इस उत्सव को एक पञ्च लाईन भी उन्होंने दिया -"अनेक ब्लॉग नेक हृदय "  उन्होंने  यह  भी  कहा  कि " अब हम समस्‍त हिन्‍दी ब्‍लॉगरों के हृदयों को नेक बनाने की मुहिम चला रहे हैं। उसके बाद ब्‍लॉग पाठकों को और फिर समस्‍त संसार को। आप सब इस मुहिम में हमारे साथ हैं।"



नीरज गोस्वामी ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा था कि -"बहुत नया विचार है और अच्छा भी लेकिन ये बहुत मेहनत मांगता है......जिसमें यश मिलने की कम और अपयश मिलने की सम्भावना अधिक है...ये सब जानते बूझते हुए भी अगर आप ऐसा कदम उठाना चाहते हैं तो हम आपके साथ हैं...!"

हिमांशु ने कहा - "गुरुतर कार्य है, पर शायद आप ऐसे गुरुतर कार्य की शुरुआत और उसे सम्पादित कर सकने वाले सर्वमान्य व्यक्तित्व हैं । यह सोच ही अत्यन्त महत्वपूर्ण है, और शुरुआत भी । हम सब साथ हैं आपके। रचनात्मक सोच यही तो है ।'' गौतम राजरिशी ने कहा- " ये तो बड़ा ही श्रम-साध्य वाली परिकल्पना है रविन्द्र जी। लेकिन आपकी क्षमता से पूरा हिंदी-ब्लौग परिचित है... !"



निर्मला कपिला  ने कहा -"प्रभात जी आपकी प्रतिभा और कुछ नया करने की क्षमता तो हम परिकल्पना पर पहले भी देख चुके हैं । और अब ये नया प्रयास "परिकल्पना ब्लॉग उत्सव-2010" तो और भी सराहणीय कदम है। बेशक ये एक दुरूह कार्य है मगर मुझे पूरा विश्वास है कि आप इसे कर पायेंगे। आपकी कर्मठता और साहित्य सेवा वंदणीय है। बहुत बहुत शुभकामनायें। ''


अजय कुमार झा ने कहा -"रविंद्र जी मुझे तब बहुत मजा आता है जब पाता हूं कि कोई एकदम नई सोच और परिकल्पना के साथ सामने आता है ...और आपके लिए तो कहा ही क्या सच कहा आपने ...आज ब्लोगजगत को उत्सव परंपरा को निभाने की बहुत जरूरत है ...! "

जी. के. अवधिया ने कहा - "आपके द्वारा पूर्व में किये गये कार्य सराहनीय रहे हैं और आपका यह कार्य तो सोने में सुगंध का काम करेगा। "

डा. अरविन्द मिश्र ने कहा- "प्रशंसनीय उपक्रम उत्सव का यह रंग हमारी परंपराओं और रीति-रिवाजों को कायम रखने, आपस में लोगों को जोड़ने और सर्वत्र हंसी-खुशी का वातावरण बनाए रखने में मदद करता है ।"
रश्मि प्रभा ने कहा- "अद्भुत" और रश्मि रबीजा ने कहा- "यह बहुत ही स्वागत योग्य कदम है...प्रसन्नता है कि कुछ चुनिन्दा उत्कृष्ट रचनाएं पढने को मिलेंगी. "  
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अब आगे  मैं आपको बताऊंगा उत्सव की शुरुआत और उसके  आगे की सिसिलेवार कहानी , किन्तु उससे पहले आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल जहां शमां उपस्थित हैं अपने संस्मरण के साथ .....यहाँ किलिक करे
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जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद  

2 comments:

  1. ....बेहतर प्रस्तुति , बधाईयाँ !

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  2. जब दिखेगा इस तरह का हौसला..यह करने की अदम्य लालसा..रचने का अभिनव उत्साह..सदैव आशीर्वादित होगी कोई भी नई परिकल्पना ! बरबस ही फूटॆंगे मुँह से शुभकामनाओं और आशीर्वाद के वचन ! खुद ही बढ़ जाएंगी बाहें ! स्वयं ही तय हो जायेंगी राहें ..अपने आप समीप आ जायेगी उपलब्धि !
    परिकल्पना की जय हो !

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