इमरोज़ ...प्यार का स्तम्भ ...मुहब्बत का मसीहा

रंगों का चितेरा ...नज्मो का रचयिता ...
इमरोज़ ने खुद को इस तरह ज़ाहिर कर ही दिया कि ...

मैं रंगों के संग खेलता
रंग मेरे संग खेलते
रंगों के संग खेलता-खेलता
मैं इक रंग हो गया
कुछ बनने, कुछ न बनने से
बेफिक्र, बेपरवाह...

उनकी पूरी जिन्दगी बीती है ... बेफिक्री बेपरवाही में डूबी संजीदगी में ...ओह ...मैं उलझ रही हूँ शब्दों में ...अमृता की ही बात कर लेती हूँ

अमृता को जब भी पढ़ा ...अमृता के बारे में जब भी पढ़ा ...इमरोज़ से अलग पढ़ा ना जा सका ...एक दूसरे का हमसाया, परछाई बनकर भी एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं ...दोनों समान्तर रेखाओं की तरह जीते रहे ...ऐसी समान्तर रेखाए जो साथ रहती भी थी ...मिलती भी थी ...साथ मगर जुदा ...कैसे किया होगा ...कैसे जिया उन्होंने इस रिश्ते को ...बहुत हैरानी होती है मुझे ....

कहीं  पढ़ा था ... लिव -इन -रिलेशनशिप की मिसाल दी गयी इस रिश्ते को .....लिव -इन -रिलेशनशिप की वकालत करती आज की पीढ़ी क्या इस तरह का रिश्ता जी सकती है ...

यह रिश्ता था लिव इन अमृता ...लिव इन इमरोज़ ...लिव इन लव ...लिव इन इच अदर... इसलिए ही उनके रिश्ते को किसी कानूनी मदद की आवश्यकता नहीं रही ...जो रिश्ते कानून के डर और उसके साये में निभाए जाये ...वह रिश्ता इतना खुशनुमा नहीं हो सकता ...बिना शर्त , बिना अतिक्रमण ...सिर्फ प्यार ....जबानी या जिस्मानी नहीं ...महज़ रूहानी ...
लिखना चाह रही हूँ इमरोज़ के बारे में ...मगर शब्द आकर अमृता पर अटक रहे हैं ....
उनकी लिखी एक क्षणिका याद रही है ....
वह नदी है
मैं किनारा
वह नदी की तरह बहती आ रही है
और मैं ज़रखेज़ होता जा रहा हूँ.....
उसका नदी की तरह यूँ बहना कि वह ज़रखेज़ होता जाता है ....फिर मैं कैसे रख पाऊं अमृता को दूर इमरोज़ से ....
कई बार पढ़े हैं ये प्रसंग ....इमरोज़ के पीछे बैठे हुए अमृता का अँगुलियों से साहिर का नाम लिखना ...अमृता को साहिर के घर इबादत करते हुए भी ढूंढ लेना का विश्वास ....दोनों के हाथो की लकीरों का एक होकर इमरोज़ की किस्मत बन जाना ...

मेरी शब्दों में कहाँ इतनी जान जो अमिरता और इमरोज़ के इस रूहानी पाक रिश्ते को बयान कर सके ...बहुत चाहा इमरोज़ को अमृता के बिना लिखना ...नहीं लिख पायी ...


वाणी शर्मा
http://teremeregeet.blogspot.com/
 
 
 
 

परिचर्चा प्रस्तुति : रश्मि प्रभा
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आज का यह कार्यक्रम संपन्नता की ओर अग्रसर है , वाणी शर्मा के विचारों को आत्मसात करने के बाद इस परिचर्चा रूपी वाणी को मैं यहीं विराम देता हूँ और आपको लिए चलता हूँ कार्यक्रम स्थल की ओर जहां ललित शर्मा उपस्थित हैं अपनी पेंटिंग्स के साथ .....यहाँ किलिक करें
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और अब हम आपको लिए चलते हैं माला की विदेशों में रहने वाले हिंदी प्रहरियों के बारे में जानकारी देने वाली श्रृंखला हमें गर्व है हिंदी के इन प्रहरियों पर ....यहाँ किलिक करें
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कल अवकाश का दिन है मिलते हैं पुन: दिनांक १४.०५.२०१० को सुबह ११ बजे परिकल्पना पर......मगर  रुकिए विदा लेने से पहले मैं आपको बता दूं कि आज शाम ७.१५ बजे देखना न भूलें यह कार्यक्रम -
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9 comments:

  1. bahut sundar prastuti..
    par aako badhai

    vaaniji ko bhi badha

    http://sanjaykuamr.blogspot.com/

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  2. प्यार को प्यार का स्पर्श दे दिया

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  3. kuch na kah kar bhi kitna kuch kah diya aapne....hamein to padh kar bahut achcha laga

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  4. शानदार प्रस्तुति...बधाई !!

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  5. सबसे पहले वाणी शर्मा जी को बधाई
    अमृता इमरोज के बारे में लिखने की हिम्मत ही बड़ी बात है
    ये साहित्य ही है जो समाज को उल्ट पलट के रख देता है और ये साहित्यकार हैं जो किसी भी नये समाज की रचना कर सकते हैं और नयी धारा बहा सकते हैं

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  6. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति……………।बहुत ही सुन्दर अहसास्।

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