"...........१८५७ की क्रान्ति भारतीय इतिहास की एक युग परिवर्तनकारी घटना थी। इस क्रान्ति ने लोगों में गुलामी की जंजीरें  तोड़ने का साहस पैदा किया। यद्यपि अंग्रेजी हुकूमत ने इस क्रान्ति से निकली ज्वाला पर काबू पा लिया और शासकीय ढाँचे में आधारभूत परिवर्तन करके भारत को सीधे ब्रिटिश  क्रउन के नियंत्रण में कर दिया, पर यह कदम लोगों के अन्दर पनप रहे स्वाधीनता के ज्वार को नहीं खत्म कर पाया। देश की तरुणाई अँगड़ाई लेने लगी और ऐसी राष्ट्रीयता  की भावना पैदा की जिसने क्रान्तिकारी गतिविधियों को बढ़ावा दिया और समूचे राष्ट्र  में चेतना की लहर फैलायी। १८५७ की क्रान्ति पश्चात  वासुदेव बलवन्त फड़के प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने सशस्त्र  क्रान्ति द्वारा अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालकर स्वराज्य प्राप्ति का सपना देखा। अंगे्रजी सरकार की भयग्रस्त स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि फड़के का बलिदान १७ फरवरी १८८३ को अदन जेल में हुआ, लेकिन देश की जनता को इसकी सूचना एक माह बाद दी गयी। 

ये पंक्तियाँ अमित कुमार यादव के हैं ...आज ब्लोगोत्सव के मंच से भारतीय इतिहास के उन अनछुए पहलुओं को प्रस्तुत कर रहे हैं जिसे पढ़ने के बाद सहसा हृदय में सात्विक ऊर्जा का संचार होने लगता है .....आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल पर और पढ़ते हैं जंग-ए-आजादी में क्रांतिकारियों की भूमिका पर श्री अमित कुमार यादव का यह सारगर्भित आलेख .....यहाँ किलिक करें 




जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद

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