"पिता की कराहती आवाज़
हवा संग, ऊंचे पर्वतो
उबड़- खाबड़ रास्तो
खेत-खलिहानों, नदी -तालो
वृक्षों, उनके झुरमुटों के
बीच से होकर
इस महानगर की
भागती- दौड़ती
जिंदगी को चीरती
समय की
आपाधापी को फाडती
थकी -हारी
सीधे मेरे हृदय में
जा धंसती है औऱ
मैं लगभग बेसुध सा
तत्क्षण उनके पास
पहुंचने के लिए
अधीर हो उठता हूं....!"
ये पंक्तियाँ अमिताभ श्रीवास्तव की कविता :पिताजी की है, जिसे हम ब्लोगोत्सव के नौवे दिन आज प्रकाशित कर रहे हैं . चलिए चलते हैं कार्यक्रम स्थल पर उनकी कविताओं की गहराई को महसूस करने के लिए ......यहाँ किलिक करें
जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद
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ब्लोगोत्सव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि प्रत्येक दिन आपकी प्रस्तुति का अंदाज बदलता रहा है , आपकी प्रस्तुति आकर्षित करती है .....आपने एक प्रकार से इतिहास रच दिया है हिंदी ब्लोगिंग में .....आपको कोटिश: साधुवाद !
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सारगर्भित रचना, बधाई !
जवाब देंहटाएंआपकी जय हो ....परिकल्पना की जय हो ....जय हो हिंदी ब्लोगिंग की !
जवाब देंहटाएंआप सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं प्रभात जी, आपको शुभकामनाएं !
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