"पुनर्जन्म- ऐसा माना जाता है की मृत्यु के पश्चात् मनुष्य के शरीर का कोई हिस्सा बचा रहा जाता है ताकि वह किसी और रूप /शरीर में जन्म ले सके,इसके वैज्ञानिक तौर पर अब तक कोई प्रमाण नहीं मिले हैं किन्तु आस्था सभी की यही कहती है की पुनर्जन्म होता है तभी तो किसी से मिलने पर लगता है जैसे हमारा उससे कोई नाता है, हम पहले से ही उस व्यक्ति को किसी तरह जानते हैं ,उसकी आदतें, बोलचाल, व्यवहार बहुत जाना पहचाना लगता है और तब ही कहा जाता है की शायद पिछले जन्म का कोई रिश्ता है,उससे मिल कर लगता है जैसे किसी बहुत पुराने रिश्तेदार से मिल रहे हो जबकि हम पहली बार मिलते हैं.....इससे लगता है की हमारा कोई ना कोई पिछला जन्म तो होगा. कभी कभी किसी स्थान पर पहली बार जाने पर भी ऐसा जान पड़ता है मानो हम वहां पहले कई बार आ चुके हैं, हो सकता है की हमारी पूर्वजन्म की कुछ बातें हमारे सूक्ष्म शरीर में रह जाती हैं जो आत्मा के फिर से नए शरीर में आने पर हमारे अवचेतन मन में इंगित करती हैं की ये सब हमारे साथ पहले घटित हो चुका है और तब ही लगता है की हम पिछले जन्म में भी कहीं ना कहीं,किसी ना किसी रूप में अवश्य थे , और ये हमारा पुनर्जन्म है.मेरे विचार से पुनर्जन्म होता है. "
श्रीमती ज्योत्स्ना (http://jyotsnapandey.blogspot.com/) सहजता से बताती हैं,
"पुनर्जन्म होता है या नहीं ? प्रश्न अच्छा है ,इस संदर्भ में मैं आपको अपने ही परिवार की एक घटना से अवगत करती हूँ .....
बात उन दिनों की है जब मेरे बड़े भाई जोकि एयरफोर्स से अब रिटायर हो चुके हैं ,ढाई वर्ष के थे . भोजन परोसते समय माँ से बोले हम ऐसी प्लेटों में नहीं खाते थे .....
कैसी ? माँ ने जिज्ञासावश पूछा .
चीनी-मिटटी की प्लेट की तरफ इशारा करके बोले ऐसी में खाते थे .
अब तो सभी लोग इकट्ठे हो गए और उन बातों को बार बार पूछते ---घर में कौन कौन था ?
मैं मेरी वाइफ और मेरे बच्चे .
कितने बच्चे हैं ?....दो ,बेटी नाम जस्टी,और बेटे का पैनाडी.
तुम क्या करते थे?...मैं इंजिनियर था ......
क्या हुआ था तुम्हें ?....थोडी सी ज्यादा हो गयी थी ............बस एसीडेंट हो गया .
कैसे .?....मेरी व्हाइट कार पीपल से टकरा गयी थी ........न
तुम्हारा घर कहाँ है ?.......मानरोविया..
उस समय इस विषय पर बहुत शोध हो रहे थे ,तो एक पारिवारिक मित्र जो की राजनैतिक भी थे ने सलाह भी दी--"चलो घूमना भी हो जायेगा और खर्चा सरकार उठाएगी .बेटे को ले चलो"
माँ को डर था की कहीं बेटा ही न हाथ से चला जाये उन्होंने मना कर दिया .
{हम गाँव की मिटटी से जुड़े लोग हैं ,आप कह सकती हैं ठेठ देहाती .ऐसे में उनके द्वारा प्रयुक्त अंग्रेजी के शब्द वास्तव में विस्मित करते थे .अब फैसला आप पर छोड़ती हूँ की पुनर्जन्म होता है या नहीं .}"
आईये अब चलते हैं पुन:
कार्यक्रम स्थल की ओर जहां मंजू गुप्ता उपस्थित हैं अपनी कविताओं के साथ ......यहाँ किलिक करें
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परिचर्चा जारी है मिलती हूँ एक अल्प विराम के बाद
अभी तक जितनी भी पुनर्जन्म की घटनाएं सुनने में आई हैं, वे विज्ञान की कसौटी पर खरी नहीं उतरी हैं।
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