और अब मैं आपको सुखदेव नारायण की इस कविता से आज के कार्यक्रम की संपन्नता की घोषणा करने जा रही हूँ ...किन्तु उससे पहले आपको बता दूं कि आज श्रीमती अल्पना देशपांडे ब्लोगोत्सव पर अपनी कलाकृतियों को प्रदर्शित करने जा रही हैं . वहां आपको मैं ले चलूंगी लेकिन उससे पहले आईये पैसे की महिमा पर प्रकाश डालती इस कविता को आत्मसात करें-

!! पैसा !!


क्रय - बिक्रय का जरिया
पैसा
कदम कदम पर / चाहिये पैसा
पैसा है श्रम
मान मर्यादा की रक्षा

करता है पैसा
पैसा हिम्मत है
पैसा संबल है
पैसा मनोबल है
पैसा जानलेवा है

साधु-संत
राजा-रंक
चाहिए सबको पैसा
नींद हराम कर देता है
पैसा
जो भी हो / पैसा तो चाहिए
काम नहीं चलता है
पैसा के बिना - किसी का भी
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इस कविता के साथ-
आत्मा और पैसा पर मेरा  एक दृष्टिकोण







आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकता, अग्नि नहीं जला सकती
पानी नहीं गला सकता, हवा नहीं सूखा सकती...............
आत्मा अमर है !
आत्मा की अमरता है, (गीता में कहा गया है) ! मृत्यु उपरांत उसकी शान्ति के लिए अनेकों प्रयोजन संपन्न होते हैं,
एक अनूठी शांति के लिए अनेक कार्य संपन्न होते हैं.....
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पैसा को शस्त्र नहीं काट सकता, अग्नि नहीं जला सकती
पानी नहीं गला सकता, हवा नहीं सूखा सकती.................
पैसा अमर है !
पैसे के अमरत्व के विषय में श्री कृष्ण ने गीता में कुछ नहीं कहा , पर कौरवों की मृत्यु के बाद विलाप करती गांधारी की
भूख प्रबल करके प्रभु ने बताया कि जब तक जीवन है सिर्फ पेट की ज्वाला प्रमुख है !
लेकिन कलयुग में आत्मा मर गयी, पैसा सबकुछ हो गया.......इधर पैसा,उधर पैसा .... जहाँ तक पहुँच है, उसे छुपा रहे हैं,
मृत्यु अवश्यम्भावी है - जानते हुए पैसे को अमर बेल की तरह बढा रहे हैं और आत्मा को मार रहे हैं !
रिश्तों की दुर्गन्ध हर घर में फैली हुई है , 'भौतिक चाह ' के आगे सबकुछ बेमानी हो चले हैं . वक़्त ही कहाँ जो किसी की आँखों में
चमक आए , बस 'कमाओ, बचाओ' ...
इस भूख को कैसे शांत करें ? इस पैसे के मध्य किसे अपना कहें ? उसे जो पैसा देकर घमंड से भर जाता है, या उसे जो सर पे हाथ रख
पूछता है---'नींद नहीं आ रही? "
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 मैं रश्मि प्रभा कार्यक्रम के आखिरी चरण में अब आपको ले चल रही हूँ कार्यक्रम स्थल की ओर जहां  अल्पना देशपांडे आपको दिखाएंगी अपनी अनमोल कलाकृतियाँ .....यहाँ किलिक करें
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अंतर्जाल  पर श्रेष्ठ पोस्ट श्रृंखला के अंतर्गत आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं  बालेन्दु शर्मा दाधीच का आलेख : हिंदी के अनुकूल होती जा रही है आईटी की दुनिया ..........यहाँ किलिक करें
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और अंत में मेरी कोटिश: शुभकामनाएं -

परिकल्पना का विस्तार
उमड़ता सैलाब
सबकी भावनाएं
उत्कृष्ट विचार
निःसंदेह
परिकल्पना का ख्वाब जिसने दिखाया है
वह इस सदी के अंत तक अपना अस्तित्व रखेगा......
 
 
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इसी के साथ रश्मि को इजाजत दीजिए-
 कल और परसों यानी १५ और १६ मई को अवकाश का दिन है ...मिलते हैं दिनांक १७.०५.२०१० को पुन: परिकल्पना पर प्रात: ११ बजे ...तबतक के लिए शुभ विदा !

2 comments:

  1. उम्दा प्रस्तुती ,आपको अनेक शुभकामनायें /

    जवाब देंहटाएं
  2. कहते है पैसा कुछ नहीं ,पर पैसे के बिना भी कुछ नहीं |पैसे की महत्ता को बहुत कविता में बहुत ख़ूबसूरती से दर्शाया है |
    रश्मिजी आपने आत्मा और पैसे को गीता के सन्दर्भ में नये द्रष्टिकोण से परिभाषित किया है|
    ज्यों-ज्यों पैसा बढ़ रहा है मानवीय मूल्यों में भी तेजी से परिवर्तन आ रहे है |और आपने बिलकुल सही कहा है रिश्तो की दुर्गन्ध हर घर में फैली है |

    जवाब देंहटाएं

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