स्वागत है आप सभी का पुन: परिकल्पना पर . ब्रेक से पहले मैं  जिस विषय के बारे में आप सभी को बता रही थी वह था...... क्या आप आज के लाईफ स्टाईल से संतुष्ट हैं ? ...... आईये मैं सबसे पहले आपको मिलवाती हूँ कविवर पन्त की मानस पुत्री यानी अम्मां श्रीमती सरस्वती प्रसाद से और उनसे पूछती हूँ कि क्या वे आज के लाईफ स्टाईल से संतुष्ट है ?

सरस्वती प्रसाद
http://kalpvriksha-amma.blogspot.com/

माना ये सच है - 'परिवर्तन होता इस जग में
प्रकृति बदलती है
दिन की स्वर्ण तरी में बैठी
रात मचलती है'
फिर भी, हद हो गई ! आज की लाइफ स्टाइल को देखकर लगता है भारत में अमेरिका उतर आया है. सर से पांव तक आधुनिकता की होड़ लगी है. नैतिकता की बातें विस्मृत हो चुकी हैं. वर्जनाएं रद्दी की टोकरी में फ़ेंक दी गयी हैं . अश्लील क्या होता है-कुछ नहीं . संस्कार की बातें दकियानूसी लगने लगी हैं. एक-दूसरे को लांघकर आगे निकल जाने की ऐसी होड़ लगी है,कि फैलती कामनाओं के बीच भावनाएं दब गयी हैं. जीने को अपने निजी विचार , अपना घेरा है . इसमें औरों का कोई स्थान नहीं . संबंधों की एक गरिमा हुआ करती थी,आज के सन्दर्भ में उसका कोई स्थान नहीं. वेश-भूषा , खान-पान जीवनचर्या में भारत महान कहीं नज़र नहीं आता . जिस हिंदी पर हमें नाज था,वह पिछडे लोगों की भाषा बनती जा रही है .शिष्टता , आदर-सम्मान,व्यवहार,बोली- जो व्यक्ति की सुन्दरता मानी जाती थी,उस पर आडम्बर का लेप लग गया है. लज्जा, जो नारी का आभूषण था , आज की लाइफ स्टाइल में कुछ इस तरह गुम हुआ कि कहीं भीड़ में जाओ तो लगता है कि अपना-आप गुम हो गया है और खुद की आँखें ही शर्मा जाती हैं . भागमभाग का ऐसा समां है कि न किसी से कुछ पूछने का समय है और न अपनी कह सुनाने की कोई जगह रही.....
आलम है - ' आधुनिकता ओढ़कर हवा भी बेशर्म हो गई है
उसकी बेशर्मी देख गधे
जो कल तक ढेंचू-ढेंचू करते थे
आज सीटियाँ बजाने लगे हैं
गिलहरी डांस की हर विधा अपनाने को तैयार है
पर कुत्तों को अब किसी चीज में दिलचस्पी नहीं
अपनी मूल आदत त्याग कर
भरी भीड़ में सो रहे हैं
समय का नजारा देखते जाओ
रुको नहीं , चलते जाओ
अब 'क्यों' का प्रश्न बेकार है !

इस महत्वपूर्ण विचार को  प्रस्तुत  करने के बाद मैं रश्मि प्रभा आपको ले चलती हूँ  पुन: कार्यक्रम स्थल की ओर जहां देश के सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट श्री काजल कुमार अपने श्रेष्ठ कार्टून्स के साथ ब्लोगोत्सव को गरिमा प्रदान करने के उद्देश्य से उपस्थित हैं ......यहाँ किलिक करें

उत्सव का यह क्रम अनबरत जारी  है , आप कार्टून्स का आनंद लें , मैं मिलती हूँ एक अल्पविराम के बाद !

2 comments:

  1. "रुको नहीं , चलते जाओ
    अब 'क्यों' का प्रश्न बेकार है !"

    अक्षरशः सत्य ! बेहतरीन विचार ।

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

 
Top