आज अचानक ही मन में विचार आया कि आप सबको पत्र के माध्यम से अपने मन की बात कहूँ. मैंने अपने मन में भारत का जो चित्र खींचा था, वो मुझे कहीं नज़र नहीं आता. हाँलांकि देश ने इन ६२ वर्षों में बहुत तरक्की की है, बड़ी बड़ी सफलताएँ प्राप्त की हैं, परन्तु मूलरूप से देखा जाये तो भारत अभी भी बहुत पिछड़ा हुआ देश है.
कृषि प्रधान देश होने के बावजूद यहाँ के किसान छोटे- छोटे कर्जों के लिए आत्महत्या करने के लिए प्रेरित हो रहे हैं. मैंने ऐसे देश की तो कल्पना नहीं की थी. शिक्षा का प्रचुर मात्रा में प्रचार-प्रसार होने के बाद भी शिक्षा जन-जन तक नहीं पहुँच पाई है. गरीबी इतनी ज्यादा है कि गरीब शिक्षा से ज्यादा रोज़गार को महत्त्व देते हैं. योजनायें सब बनती हैं लेकिन उनका पालन उचित प्रकार से नहीं हो पाता. सरकारी तंत्र इतना भ्रष्ट हो चुका है कि कोई भी कार्यक्रम सफल नहीं हो पाता. सरकार स्वयं जानती है कि जो पैसा वो विकास के लिए या जनता की मदद के लिए केंद्र से भेजती है उसका १०% भी सही जगह नहीं पहुँचता. मैं यही पूछना चाहता हूँ कि इस बात की जानकारी होने के बाद भी क्या सरकार इतनी निकम्मी है कि तंत्र को सुधार नहीं सकती... मुझे लगता है कि देश कि जनता भी सोई पड़ी है.. बस ये शिकायत तो रहती है कि सरकार कुछ करती नहीं लेकिन वो स्वयं क्या कर रही है? सब अपना स्वार्थ साधने में लगे हुए हैं.. अपना काम निकालने के लिए खुद ही रिश्वत देने से बाज़ नहीं आते.
देश में प्रजा तंत्र है....पर चुनावों के दौरान क्या क्या होता है किसी से छिपा नहीं है देश को ऐसे नेताओं के हाथ में दिया हुआ है जो देश के विकास के बजाये अपने विकास में लगे रहते हैं.. धर्म और जाति के नाम पर वोट बैंक बनाये जाते हैं. देश की आज़ादी के समय जो धर्म के नाम पर बंटवारा हुआ उससे मेरी आत्मा पर अब तक बोझ है, और ये बोझ निरंतर बढ़ता जा रहा है. आज भी सब देश को बांटने की ही बात करते हैं. मैंने कभी भी नहीं चाहा था कि देश के टुकड़े हों.......पर देश को मिलने वाली आज़ादी के सामने उस वक़्त मैं लाचार हो गया था. मैं जानता हूँ कि सत्ता पाने की चाहत मन में विद्वेष पैदा करती है. और उस समय भी यही हुआ...कारण कुछ भी रहा हो....हम आज की बात करते हैं.... मैं आप सबसे अपील करता हूँ कि मन से वैमनस्य की भावना को त्याग कर देश की प्रगति का हिस्सा बने. जन-जन तक शिक्षा अभियान चलायें. देश को ऐसे नेता दें जो देश और देशवासियों के लिए काम करें. देश को सामजिक, राजनैतिक और आर्थिक आधार पर सुदृढ़ करें. और इन सबसे पहले स्वयं को विश्वास की ज्योति से आलोकित करें..
शुभकामनाओं के साथ -
आपका अपना
मोहनदास करमचंद गाँधी
-संगीता स्वरुप
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इन विचारों को आत्मसात करने के बाद आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां ब्लोगोत्सव के तकनीकी सलाहकार विनय प्रजापति उपस्थित हैं चिट्ठाकारों के लिए एक महत्वपूर्ण जानकारी लेकर....यहाँ किलिक करें
=========================================================================जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद
gret
जवाब देंहटाएंदेश की सारी समस्याओं के मूल में सत्ता के शिखर पर भर्ष्ट और गद्दार लोगों का बैठा होना और जनता का सोते रहना है / आज भी जनता इन गद्दारों के खिलाप सर पर कफ़न बांध कर उठ खरा हो, तो देश और समाज की हालत सुधर सकती है /
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है.
जवाब देंहटाएंसच्चाई बयाँ कर रहा है...यह पत्रनुमा आलेख...और दिल का डर भी ..सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंडर = दर्द
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar dhang se soye huon ko ek sandesh diya hai ............shayad kuch to jagran ho.
जवाब देंहटाएं. मैं आप सबसे अपील करता हूँ कि मन से वैमनस्य की भावना को त्याग कर देश की प्रगति का हिस्सा बने. जन-जन तक शिक्षा अभियान चलायें. देश को ऐसे नेता दें जो देश और देशवासियों के लिए काम करें.
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hmm magar Mumma aisa kahan hota hai..:(:(
ye baatein to humein swayam se bhikehni aur poochhni chahiye..........
bahut sateek aalekh.....aatmvivehan ko prerit karta hua...ise padhne wale bhi khin na kahin khud se nazar churate dikehnge........
baharhaal...........
umda vichaar rakhe Mumma....:)
- Taru
विचार अत्यंत ही सारगर्भीत है , आभार !
जवाब देंहटाएंगाँधी के दर्द को बाखूबी वायान करने हेतु संगीता जी को कॉटिश: आभार
जवाब देंहटाएंacchi rachna.
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