स्वागत है आप सभी का पुन: परिकल्पना पर
मैं ललित शर्मा !
डा. डी. डी. सोनी जी से मिलवाने के बाद
एक नाटक की प्रस्तुति को वयां करने जा रहा हूँ
नाटक का शीर्षक है -
फ़ांसी के बाद?
ब्लॉग उत्सव में अब तक आपने हर विधाओं की श्रेष्ठ प्रस्तुति देखी है, रवीन्द्र प्रभात जी ने इस उत्सव में लगभग सभी विधाओं को शामिल करके उत्सव को यादगार बनाने में अप्रतिम भूमिका निभायी है, केवल एक विधा की प्रस्तुति नहीं हो पायी थी अबतक .....उस कमी को मैं पूरा करने जा रहा हूँ ...मुझे यकीं है आपको अवश्य पसंद आयेगा ....!
एक अवास्तविक घटना "फ़ांसी के बाद" दरअसल अवास्तविक घटना इसलिए है कि एक तो ऐसा घटित होना वाकई संभव नही है, दूसरे इसलिए भी एक घटना का अवास्त रुप निर्दोष आदमी की जिन्दगी को मौत का जामा पहना देता है। ईश्वर प्रसाद को फ़ांसी की सजा हो जाती है। उस पर आरोप है कि उसने अपनी पत्नी का गला दबा कर हत्या की है। लेकिन निर्धारित समय तक फ़ांसी के फ़ंदे में लटकाने के बाद भी ईश्वर प्रसाद जिंदा बच जाता है। अब यहां एक अनोखी समस्या आ जाती है कि वह जिंदा तो हो जाता है पर उसकी याददास्त चली जाती है। तब दोबारा फ़ांसी पर चढाना भी एक समस्या है क्योंकि कानून के तहत जिस व्यक्ति को फ़ांसी दी जाती है, उसे उसके अपराध के बारे में उसके होशहवास में बताना आवश्यक है कि उसे किस कारण से सजा दी जा रही है, अब इसके बाद जेल में प्रारंभ होती है ईश्वर प्रसाद की याददास्त को वापस लाने की कवायद।
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आगे के बारे में हम बताएँगे एक छोटे से विराम के बाद , लेकिन उससे पहले आईये आपको ले चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां मुकेश कुमार सिन्हा जी उपस्थित हैं अपनी एक कवता के साथ .....यहाँ किलिक करें
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जारी है उत्सव मिलते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद
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