स्वागत है आपका पुन: परिकल्पना पर आईये सोनी जी के साथ बातचीत का यह क्रम आगे बढाते हैं -
शायद इसे ही कहते हैं "हपट परे तो हर-हर गंगे", हा हा हा.......वर्तमान समय में हम देख रहे हैं कि चित्रकारी पर संकट मंडरा रहा है. हाई रेजुलेशन कैमरे आ चुके हैं उन कैमरों के चित्रों की प्रदर्शनी लगती है. पहले फिल्मों के पोस्टर, बैनर, दुकानों के साइन बोर्ड, विज्ञापन के बोर्ड इत्यादि बना करते थे इनसे चित्रकारों को रोजगार मिल जाता था जीविकोपार्जन के लिए. अब यह काम कंप्यूटर से होने लगे, फ्लेक्स बनाने लगे. यह काम चित्रकारों के हाथ से निकल गया. मैंने पुरे भारत का दुआर किया और जाना कि जो हमारे चित्रकार हैं उनके सामने अब रोजगार कि समस्या खड़ी हुयी है. इन विषम परिस्थियों में आप चित्रकारी का क्या भविष्य देखते हैं? आगे चित्रकारी से रोजगार मिल सकता है या इसके सामने और भी भीषण संकट आ सकता है?
इस विषय पर मेरे विचार बहुत खुले हैं, मैं आपको बताता हूँ कि कोई भी व्यक्ति, बच्चा या चित्रकार मिले जिसमे ईश्वर प्रदत्त कुछ हुनर दिख रहा है, चाहे चित्रकार, शिल्पकार, मूर्तिकार, नाट्यकार, कवि, रंग मंच कलाकार हो इन्हें सबसे पहले अपनी माली हालत देखनी चाहिए कि उसके परिवार कि माली हालत क्या है? उसका परिवार उसे कितना संरक्षण दे सकता है. कितना उसका खर्च उठा सकता है? अगर माली हालत ठीक नहीं है तो पहले अपने शिक्षा को बाधाएं फिर रोजगार की व्यवस्था करें. अगर आप ये दोनों काम नहीं करते हैं तो आगे जाकर फेल हो जायेंगे, मैं ऐसा मानता हूँ. ये सच्चाई है.कम से कम ६ सात घंटे काम करके कुछ कमाए जिससे घर की परिस्थिति ठीक हो, आर्ट की शिक्षा लें, फिर स्टेज पर बोलने की क्षमता विकसित करें, जनता के बीच में काम करने की क्षमता विकसित करें. मूड में तो काम करने वाले बहुत मिलते हैं. अगर आपको आगे बढ़ाना है तो डिमांड पर काम करना भी आना चाहिए. अगर डिमांड पर काम करते हैं तो मान के चलो आपी के सफलता के ९९% चांस हैं. दुनिया में चैलेन्ज तो हर वक्त बना रहता है. कल जब आपने ब्रश उठाई थी तब भी चैंलेंज था आज आपके पास सौ पेंटिग है तब भी चैलेन्ज है. स्क्रीन प्रिंटिंग आया तब भी चैलेन्ज था.फ्लेक्स आया तब भी चैलेन्ज है और आगे माइक्रो में जो फोटोग्राफी आ रही है वह भी एक चैलेन्ज है. आपको चैलेन्ज स्वीकार कर अपनी पेंटिंग बनानी पड़ेगी. दुनिया में हाथ की बनायीं पेंटिंग का काम ख़त्म हो जाए ऐसा नहीं है. हमेशा एक वर्ग ऐसा आएगा जो हाथ की बनी पेंटिंग को आगे बढ़ाएगा. कम्प्यूटर से बनाने वाले हमें पीछे नहीं कर रहे हैं. वे लोग अपनी लाइन को आगे बढा रहे हैं. आप चित्रकार हो तो अपनी लाइन को आगे बढाओ. हाथ से हुआ सृजन माँ के हाथ रोटी की तरह है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता, चाहे पिज्जा बर्गर और अन्य खाद्य पदार्थ कितने भी आ जाएँ पर माँ के हाथ के खाने की बराबरी नहीं कर सकते.
कभी मेरे साथ होता है कि मेरे मन में कोई विचार आते हैं और वे एक चित्र का रूप लेना चाहते हैं. लेकिन उपयुक्त स्थान की कमी या समय की कमी के कारण मैं उसे मूर्त रूप नहीं दे पाता. मन तो करता है कि रंग और ब्रश उठों और कैन्वाश पर उतर दूँ. अगर नहीं उतार पाता तो मैं बहुत व्याकुल रहता हूँ. यही व्याकुलता मैंने बहुत से चित्रकारों, कलाकारों में देखी है. जो मेरे साथ घटता है, क्या यही व्याकुलता ही आगे बढ़ाने में मदद करती है?
बिलकुल यह बात वैसी ही है जब माँ अपने बच्चे को जन्म देने के लिए प्रसव पीड़ा से गुजरती है. चित्रकार भी ऐसे ही होता है, जब उसके दिमाग में कोई विचार आते हैं, जो इन विचारों को पेश कर जाते हैं वही चित्रकार के रूप में ख्यति प्राप्त करते हैं. यही सृजन की प्रक्रिया है.
हमारी यह भेंट अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी है. मेरा आपसे आग्रह है कि नवोदित चित्रकारों के लिए एक सन्देश आप दें तो उन्हें मार्गदर्शन प्राप्त होगा.
मनुष्य जो भी अपनी आँखों से देखता है उसकी एक इमेज अपने दिमाग में बना लेता है. अब अभिव्यक्ति के लिए आपको जो भी माध्यम अच्छा लगता है उसमे पूरी शक्ति, लगन और श्रद्धा के साथ जुट जाएँ और यह सोच लें कि सुनहरा भविष्य आपके ही हाथ में होगा.आप दूसरों से अच्छा काम कर पाएंगे, अब रहा सवाल सफल और असफल होने का तो सबसे पहले आपको अपनी दिशा और मंजिल तय करनी पड़ेगी. इसलिए अपनी सम्पूर्ण शक्ति का संचय करके इस कला के क्षेत्र में कदम रखे. अवश्य ही सफलता आपके कदम चूमेगी.
परिकल्पना ब्लॉग उत्सव-२०१० के बारे में कुछ कहना चाहेंगे आप ?
मैं तो यही कहूंगा कि निरपेक्ष भाव से इस तरह के कार्यक्रम में सभी को हिस्सा लेना चाहिए क्योंकि इससे सद्भावना का संचार होता है ....ब्लोगोत्सव की पूरी टीम को और विशेष रूप से आपको धन्यवाद और शुभकामनाएं देना चाहूंगा कि आप सभी उत्तरोत्तर प्रगति करें , खूब लिखें और अपने विचारों से समूची दुनिया को रोशन करें ..!
परिकल्पना ब्लॉग उत्सव-२०१० के बारे में कुछ कहना चाहेंगे आप ?
मैं तो यही कहूंगा कि निरपेक्ष भाव से इस तरह के कार्यक्रम में सभी को हिस्सा लेना चाहिए क्योंकि इससे सद्भावना का संचार होता है ....ब्लोगोत्सव की पूरी टीम को और विशेष रूप से आपको धन्यवाद और शुभकामनाएं देना चाहूंगा कि आप सभी उत्तरोत्तर प्रगति करें , खूब लिखें और अपने विचारों से समूची दुनिया को रोशन करें ..!
प्रज्ञावानं लभते ज्ञानं, श्रद्धावानं लभते ज्ञानं, जिसके पास प्रज्ञा और श्रद्धा हो्गी, वह अवश्य ही अपने कला कौशल से सुर्य की तरह प्रकाशवान होगा तथा उन्नति और सफलता उसके कदम चूमेगी. आज हमने डॉ. डी.डी.सोनी से एक अनौपचारिक बात चीत करके उनके सफल चित्रकारिक जीवन के विषय में जाना, मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ. उन्होंने बहुत ही सारगर्भित शब्दों के साथ हमें जानकारी दी. उनका आभार प्रकट करता हूँ.
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डा. डी. डी. सोनी जी के साक्षात्कार के बाद आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां रश्मि रविजा जी उपस्थित हैं अपनी एक कविता और एक ग़ज़ल के साथ ...यहाँ किलिक करें
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जारी है उत्सव मिलते हैं एक ब्रेक के बाद
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जारी है उत्सव मिलते हैं एक ब्रेक के बाद
सार्थक प्रयास अच्छी सोच /
जवाब देंहटाएंमनोरम प्रस्तुति...सार्थक प्रयास
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