एक रुपया का सिक्का हाथ में मन बहुत पीछे लौट गया है ---- एक रुपया तो लौटरी जैसा लगता था ! क्या नहीं मिल जाता था !-- नानखटाई, बुढ़िया का बाल (सोनपापड़ी),


टॉफी , लेमनचूस, चिनिया बादाम , लक्ठो ... ओह , पूरी बाद्शाहियत मिल जाती थी एक रूपये में ! लेकिन आज क्या कीमत है इसकी? भिखारी भी फ़ेंक देता है , हिकारत से

कहता है--'ले जाओ तुम ही ' ..

बूंद-बूंद से घट भरता है जैसी बात भी इसके साथ नहीं रही . बच्चे अपनी गुल्लक में पाँच रुपया डालना पसंद करते हैं . एक रूपये को बड़ी मायूसी से देखते हैं सब-

एक रुपया गाता है, ' वो दिन ना रहे अपने, रातें ना रहीं वो '

कल यह एक हसीन मेला था , आज एक गुबार !




मैं रश्मि प्रभा !
अपनी इन पंक्तियों के साथ
एक रुपया कल और आज पर परिचर्चा आयोजित करने जा रही हूँ !
आज की इस परिचर्चा की शुरुआत देश के प्रमुख हास्य कवि
श्री अशोक चक्रधर से करने जा रही हूँ
आईये उनसे पूछते हैं क्या है एक रुपये के सिक्के की औकात ?
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एक बार
बरखुरदार!
एक रुपए के सिक्के,
और पाँच पैसे के सिक्के में,
लड़ाई हो गई,
पर्स के अंदर
हाथापाई हो गई।
जब पाँच का सिक्का
दनदना गया
तो रुपया झनझना गया
पिद्दी न पिद्दी की दुम
अपने आपको
क्या समझते हो तुम!
मुझसे लड़ते हो,
औक़ात देखी है
जो अकड़ते हो!

इतना कहकर मार दिया धक्का,
सुबकते हुए बोला
पाँच का सिक्का-
हमें छोटा समझकर
दबाते हैं,
कुछ भी कह लें
दान-पुन्न के काम तो
हम ही आते हैं।
() अशोक चक्रधर
http://www.chakradhar.com/

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श्री अशोक चक्रधर जी की इन पंक्तियों के साथ मैं परिचर्चा को आगे बढाऊँ उससे पहले आपको ले जारही हूँ उत्सव स्थल जहां अवधी कवि श्री अंबरीश अंबर से बातचीत करने जा रहे हैं लोकसंघर्ष के श्री सुमन जी ...यहाँ किलिक करें


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जारी है उत्सव मिलती हूँ एक छोटे से विराम के बाद

4 comments:

  1. अब तो पांच का सिक्का भी काम नहीं आता....चवन्नी ..अठन्नी भी मुंह की खा गयीं हैं...प्रेस वाला भी कह देता है की जी अब चवन्नी अठन्नी मंदिर में चढाया कीजिये ...बहुत बढ़िया परिचर्चा

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  2. ये तो होना ही है,बढ़िया परिचर्चा

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  3. आपने बहुत ही सुन्दर रूप से लिखा है! उम्दा प्रस्तुती! बढ़िया परिचर्चा

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  4. बहुत सही विषय उठाया है आपने ... एक रूपये की तो दर्दनाक आत्मकथा लिखी जा सकती है

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