शोभना चौरे
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आज की लाइफ स्टाइल से कितने संतुष्ट है ?
कोनसी लाइफ स्टाइल ?है आज हमारे पास काकटेल है पूरब और पश्चिम का
न ही पूरब अपना प् रहे है और न ही अपना छोड़ पा रहे है और छोड़े भी क्यों?हमारी अपनी जीवन शैली है
किन्तु आज जबकि हर दूसरे परिवार का कोई नाकोई व्यक्ति विदेश में जा बसा है या आता जाता है तो वहा कि
संस्कति रहन सहन अपनाना स्वाभाविक हो जाता है
फिर भी वः अपनी जडो को नही भूलता
पिछले डेढ़ दशक में मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चो को निजी संस्थानों में नौकरी के अच्छे अवसर मिले और वे अपनी योग्यता के बल पर आर्थिक रूप से सक्षम हुए जिसके लिए उन्हें अपने घर से मिलो दूर रहना पडा
और दिन के
और अपनों से दूर हो जाता है तब आधुनिक संचार मध्यम ही उसका सहारा बन जाते है और उसका वो आदी हो जाता है
या यु भी कह सकते है वो संतुष्ट हो जाता है अपनों से बात करके
तब उसे जरुरत नही पडती कि वो अपने आसपास झांके और एक धारणा बन जाती है हम अपने पडोसियों को अनावश्यक क्यों तकलीफ दे
और वह नही चाहता कि कोई उसके निजी जीवन में दखल दे और वह भी किसी के निजी जीवन में दखल नही देता और मेरे हिसाब से इसके मूल में आर्थिक समर्थता बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निबाहती है
लोग छोड़ जाते है रौनके
हम तो शून्य भी साथ ले जाते है !
कहने को जिन्दगी हंसती रही
आँखों में आंसू तैर जाते है
आज की इस परिचर्चा को मैं यहीं विराम देती हूँ क्योंकि ब्रेक के बाद जब मैं उपस्थित होऊँगी तो आपको मिलावाऊंगी एतिहासिक नगरी पटना के श्री सुमन सिन्हा जी से , उनसे ढेर सारी बातें करने के बाद कार्यक्रम को संपन्न करूंगी .
आईये अब मैं आपको पुन: ले चलती हूँ कार्यक्रम स्थल की ओर जहां अपनी कई गंभीर कविताओं के साथ उपस्थित हैं अल्पना वर्मा .....यहाँ किलिक करें
बने रहिये परिकल्पना के साथ, मिलती हूँ एक अल्प विराम के बाद
बढ़िया साक्षात्कार
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