"............दिल के दरवाजे से निकला ये अनोखा बंधन ,
दिल की धड़कन बन धड़कता ये अनोखा बंधन ,
प्रेम के धागों से बुना ये अनोखा बंधन ,
प्यारे से रिश्तो से गुथा ये अनोखा बंधन ,
ममता से हरा-भरा ये अनोखा बंधन ,
सूत के धागों सा अटूट ये अनोखा बंधन ,
नदी के पानी सा बहता ये अनोखा बंधन ,
दिये सी लौ सा प्रकाशित ये अनोखा बंधन ........!"
ये पंक्तियाँ है क्रिएटिव डिजाईन तथा परिकल्पनाओं को अनुभूतियों के साथ शब्द में उतारने वाली चिट्ठाकारा प्रीति मेहता की है ....आज ब्लोगोत्सव के नौवें दिन प्रस्तुत है उनकी दो कविताएँ............पढ़ने के लिए यहाँ किलिक करें
जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद
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» दिये की लौ सा प्रकाशित ये अनोखा बंधन ........!
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ब्लोगोत्सव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि प्रत्येक दिन आपकी प्रस्तुति का अंदाज बदलता रहा है , आपकी प्रस्तुति आकर्षित करती है .....आपने एक प्रकार से इतिहास रच दिया है हिंदी ब्लोगिंग में .....आपको कोटिश: साधुवाद !
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सारगर्भित रचना, बधाई !
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